वो झील सी गहरी आँखे
उसपे उसकी आँखों का रंग बड़ा गजब ढाता था
झील का गहरा अक्स उसकी आँखों में समाता था।
नीला काला भूरा बादामी जो भी था
दिल को भाता था दिल उनमें ही डूब जाना चाहता था ।
उसकी जुवान तो खामोश रहती थी
पर उन आँखों में जिक्र खुलके उतर आता था।
कभी में उसके पैकर से रु व रु हो ही न सका
जब मिलते थे दिल बस उसकी आँखों में ही ठहर जाता था।
उसके हुस्न की रंगत गुलाबी थी या सांवली थी नहीं मालुम
हमें तो उसकी उन दो आँखों मे हुस्न का पूरा दीदार नजर आता था।
उसको हँसते खिलखिलाते कभी देखा ही नहीं मैने
पर वो खुश होता था तो आँखों का रंग मुस्कुराता था
गुस्सा भी कहाँ उसका होठो से वयां होता था
जब भी रूठता था आँखे गोल गोल घुमाता था।
अजीब सा तिलिस्म था उसकी आँखों में
सब देख रहें होते थे सबकुछ मुझे बस वो ही नजर आता था।
कोई सुबूत कभी मिला ही नहीं मौकाए बारदातआँखे काफी थीं, खंजर की जगह कत्ल करने को , वो , पलकों को उठाता था
बर्षों हो गए अब तो मिले बिछड़े उन आँखों से पर आज भी ,
मेरी बिना इजाजत बड़े हक से वो मेरी आँखों में उतर आता था।
यह उस जमाने की पाक मुहब्बत का जिक्र है मेरे दोस्त
जब इश्क आँखों से शुरु होकर आँखों से ही खत्म हो जाता था ।
उदय बीर सिंह
23-Sep-2021 05:48 PM
अति सुन्दर
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Gunjan Kamal
23-Sep-2021 02:28 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मैम
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Renu Singh"Radhe "
23-Sep-2021 11:25 AM
बहुत सुंदर
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